हरछठ व्रत में गाय का दूध, दही, घी और ये सामग्री भूलकर भी नहीं, जानें महत्वपूर्ण, उत्सव, पूजा विधि
नामपुरम. हिंदू सिद्धांत के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलरामजी का जन्म हुआ था। एनीजी के नाम पर हर साल हरछठ व्रत मनाया जाता है। इस व्रत को ललही छठ, हलछठ, हरछठ व रांधन छठ आदि आश्रमों से भी जाना जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित पंकज पाठक ने लोकल 18 को बताया कि धार्मिक साधकों के अनुसार, यह व्रत संतान प्राप्ति व संत की लंबी आयु के लिए किया जाता है।
हलषष्ठी व्रत पूजा उत्सव
षष्ठी तिथि 24 अगस्त को प्रातः 07:52 मिनट से प्रारंभ होगी और 25 अगस्त को प्रातः 05:28 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार हरछठ व्रत 25 अगस्त को मनाया जाएगा। हरछठ व्रत पूजन का समय प्रातः 07:31 से 09:08 बजे तक। हरछठ के दिन व्रती महिलाएं चुआन की दातुन और चुआन खाने का विधान करती हैं।
व्रत का महत्व
पंडित पंकज पाठक के अनुसार, इस व्रत के प्रभाव से संत को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। इस व्रत को विधि-विधान से करने से संत के जीवन में सभी दुख-दर्द होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
व्रत में क्या प्रभावी है
इस दिन आप व्रत में तालाब में पैदा होती हैं, चीजें ही बनाती हैं। हरछठ व्रत में गाय के दूध से बनी कच्ची या हल मूर्ति खेत से पैदा हुई चीजें नहीं खाई जाती हैं। तामसिक भोजन जैसे प्याज व लहसुन आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इस व्रत में गाय के दूध, दही या घी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
पूजन विधि
इस दिन व्रती महिलाओं के लिए कोई भी कृषि योग्य वस्तु नहीं है। महिलाएं जापानी ट्री की कास्ट का दातून, स्नान कर व्रत रखती हैं। इस पूजन की सामग्री में बिना हल जूटे उगी जमीन से उगी हुई धान का चावल, पियक्कड़ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध-दही और घी आदि हैं। सामने एक चौकी या पाट पर गौरी-गणेश, कलश कलश हलषष्ठी देवी की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा की जाती है। साथ ही बच्चों के खिलौने जैसे-भौरा, बेटी आदि भी रखे जाते हैं।
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पहले प्रकाशित : 24 अगस्त, 2024, 18:42 IST
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