मध्यप्रदेश

सागर के इस म्यूजियम में रखी है चंद्रशेखर आजाद की आखिरी निशानी, 100 साल पुरानी घड़ी

: …: देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद का जन्म वैसे तो झाबुआ जिले के भावरा गांव में हुआ था। सागर अपने जिलों से भी गहरा नाता रखता है। एक तो यह कहा जाता है कि बज़ारी के दिनों में आजाद खुद सागर से करीब 35 किमी दूर बांदा क्षेत्र में मुनीम बनकर लोकरस परिवार के काफिले पर रहे हैं। हालाँकि इसकी पूर्ण रूप से पुष्टि नहीं होती है। दूसरे आज़ाद की रिहाई के बाद उनकी मां जगरानी देवी भी करीब साल भर सागर से 45 किमी दूर रहली में क्रांतिकारी सदाशिव राव मलकापुरकर के घर पर रही हैं।

वहीं अब क्रांतिकारियों की यादों को बचाने वाले भारी संग्रहालय पथ में चंद्रशेखर आजाद की आखिरी निशानी के रूप में उनके हाथ की घड़ी रखी गई है। जो करीब 100 साल पुरानी बताई गई है। जिसे देखकर लोगों को गर्व होता है. आज भी उनकी वीरता, वीरता और बलिदान की कहानी को रोम रोम में जोश भरा हुआ है। यह संग्रहालय सागर से करीब 80 किलोमीटर दूर बीना में हैं। जिसे श्रीराम शर्मा द्वारा पिछले 35 वर्षों से बचाया जा रहा है। चन्द्रशेखर आजाद की हाथ की घड़ी के साथ उनकी मां जगरानी देवी की पीत की श्रृंगार पेटी भी रहती हैं। जो अपनी शादी में फेयरवेल के टाइम पोर्टफोलियो से लेकर आई थी।इसमें गहने रखे हुए थे।

आज़ाद के संग्रहालय में दी गई थी हाथ की घड़ी
क्रांतिकारियों की जानकारी के लिए वामपंथी कहे जाने वाले राम शर्मा के अनुयायी मध्य प्रदेश में एक स्थान पर हैं। जहां महेंद्र तिवारी और उनका परिवार रहता है। यह आज़ाद के निजी स्वामित्व वाली चीज़ है। वास्तव में यह हाथ की घड़ी और सजावटी पेटी संग्रहालय में सासोनोमोस्ट के लिए रखा गया था।

23 जुलाई को चन्द्रशेखर आजाद जयंती
चन्द्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था। 27 फरवरी 1931 को अंग्रेज़ों से हुई गैंग में वीरगति प्राप्त हो गई थी। ब्रिटेन से फ़्रैंच-लैडटे ने जब अपने दस्तावेज़ में अंतिम गोलियाँ छोड़ी तो उन्होंने अपनी कनपट्टी पर शिपमेंट ऐसे दी थी। चन्द्रशेखर आज़ाद ऐसे ही क्रांतिकारी थे। जिसमें ब्रिटिश हुकूमत की फौज कभी जिंदा नहीं रही, ग्रेट ब्रिटेन की हुकूमत की फौज भी शामिल थी। उनके नाम से अंग्रेजी ऑटोमोबाइल काम्प जाया करते थे। राम शर्मा, बीना की नई बस्ती में रहते हैं। उदाहरण के तौर पर, ऐतिहासिक और क्रांतिकारी से जुड़ी नीड़ का अवशेष करने का गजब का जुनून सवार है। अपनी इसी जेब के साथ वह पिछले 35 साल से इसे संजोने में लगे हुए हैं।

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