कोलकाता कांड पर दो दुकानें हुई टीएमसी? तीन तरफ से कैसे पकड़ें ममता बनर्जी, सबसे बड़ी वेबसाइट
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तांत्रिक कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी इन दिनों तीन-तीन मोर्चों पर घिरी हुई हैं। कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ कथित बलात्कार और हत्या के मामले में वह राजनीतिक स्तर पर पहले से ही आरजी ऑर्जी का वार झेल रही हैं। अब वह इस मामले में संवैधानिक और वास्तुशिल्प शिखर पर भी खेती कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ही इस मामले में हुई हिला-हवाली पर ममता सरकार को हटा दिया है और गहरी दोस्ती की अंगूठी है। अब ममता को घरेलू मोर्चे पर भी संकट का सामना करना पड़ रहा है।
मीडिया मित्रो में कहा गया है कि पार्टी में नंबर दो की हिस्सेदारी वाले ममता बनर्जी के विरोध-प्रदर्शन और मार्च से खुद को दूर रखने वाले इन दिनों पार्टी के कार्यक्रम में शामिल हैं। रखे हुए हैं। कहा जा रहा है कि अभिषेक कोलकता कांड से निर्माण के लिए स्पष्ट रूप से-तारीकों से नाखुश है।
कहा जा रहा है कि अभिषेक बैंच ने पिछले कुछ दिनों से पार्टी के मीडिया प्रबंधन से भी खुद को अलग कर लिया है। इस बीच सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सोमवार को मीडिया के साथ पार्टी की साझेदारी को मजबूत करने और मीडिया निगरानी के लिए एक नई चार डेमोक्रेटिक कमेटी का गठन किया है। बड़ी बात यह है कि चुनाव प्रचार के दौरान नामांकन के दौरान ही पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाली जा रही थी। चुनाव में पार्टी ने उमदा का प्रदर्शन करते हुए राज्य की कुल 42 में से 29 में जीत दर्ज की थी।
संसद के बजट सत्र में भी प्रचार-प्रसार में आक्रामक रुख अख्तियार दिखाई दिए थे, लेकिन जब से आर जी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के कथित रेप और लोकतंत्र पर मंदी शुरू हुई है, तब से वह शैल्स साधे हुए हैं। उन्होंने बस एक बार अपनी शैलियां तोड़ी, जब 14-15 अगस्त को महिलाओं के ‘रिक्लेम द नाइट’ विरोध प्रदर्शन के दौरान गुंडों के एक गिरोह ने आर जी कर अस्पताल में दुश्मनी की थी।
तब उन्होंने एक्सएक्स पर पोस्ट किया था, “आरजी कर में गुंडागर्दी और बर्बरता ने सभी आधारशिलाओं को पार कर दिया है। एक साइंटिस्ट के रूप में मैंने @CPKolkata से बात की, आपसे अनुरोध है कि वे सुनिश्चित करें कि हिंसा के लिए हर कोई जिम्मेदार हो।” किसी व्यक्ति की पहचान की जाए, उसे जवाबदेह दोषी ठहराया जाए और अगले 24 घंटों में कानून का सामना करने के लिए तैयारी की जाए, उनकी राजनीतिक संबद्धता भी कुछ हो।” उन्होंने यह भी लिखा कि सिद्धांतवादी की मांगें और न्यायसंगत हैं और जरूरी हैं कि उन्हें सरकार से उम्मीद करनी चाहिए। उनकी सुरक्षा एवं संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
अभिषेक बनर्जी की यह टिप्पणी राज्य सरकार और पुलिस बल द्वारा मामले को स्पष्ट रूप से-टेरिकॉन की आलोचना के रूप में देखी गई। अभिषेक बैबिलीन के बाद एक और अल्पसंख्यक सुखेंदु शेखर रॉय भी इसी तरह के पुलिस बल पर थे। इसके बाद कोलकाता पुलिस ने उन्हें समन जारी किया है। अभिषेक बनर्जी को लेकर पार्टी में पहले से भी गतिरोध बना हुआ है। ममता बनर्जी के पुराने साथियों को जहां पुराने गार्ड समझाते हैं वहीं अभिषेक बनर्जी को युवा तुर्क समझा जाता है और वह पार्टी में युवाओं को आगे बढ़ाने पर काम कर रहे हैं, जबकि पार्टी के पुराने दिग्गज पार्टी पर अपनी पकड़ नहीं चाह रहे हैं। ममता इस गुटबाजी से पहले से ही वाक़िफ़ हैं लेकिन चुनाव में उन्होंने इस पर अमल कर लिया था।