मध्यप्रदेश

आज तक है इस कुंड की गहराई का रहस्य, कोई भी सुनामी और आपदा से पहले देता है संकेत

विज्ञान ने कितने भी जानवर कर लिए हैं लेकिन प्रकृति के कई रहस्यों को सुलझाने में वह अभी भी नाकाम है, ऐसा ही एक रहस्य मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में है। छतरपुर में भीमकुंड नाम का एक जल कुंड है। यह कुंड आम लोगों के लिए नहीं बल्कि भू-वैज्ञानिकों के लिए भी एक रहस्य है। काफी प्रयास करने के बाद भी वैज्ञानिक आज तक इस कुंड की गहराई तक नहीं पहुंच पाए हैं। जानिए इस दिलचस्प और रहस्य से भरे कुंड के बारे में।

भीमकुंड को लेकर मन्यता है क्य यह एक शांत व्यक्तित्व है। गहराई की बात करें तो डिस्कवरी चैनल के अमेरीकाओं से लेकर कुछ अन्य असिअंगों ने अपनी गहराई नापने का प्रयास किया है लेकिन अधिक 370 फुट की गहराई तक ही जा सके हैं। एक बार विदेशी ब्रिगेड ने पानी के अंदर 200 मीटर तक का कैमरा भेजने के लिए कुंड की गहराई का पता लगाया, लेकिन तब भी इसकी गहराई का पता नहीं चल पाया।

तूफ़ान, सुनामी का देता है संकेत
दिखने में साधारण सा दिखने वाले इस कुंड के बारे में कहा जाता है कि जब भी एशियाई महाद्वीप में कोई प्राकृतिक आपदा, बाढ़, तूफ़ान या सुनामी आती है तो कुंड का पानी उसके बारे में पहले ही संकेत दे देता है क्योंकि यह आपके लिए पानी है बढ़ना लगता है. कहते हैं कि सुनामी के दौरान ऐसा भी देखा गया था। इसी कारण से आईएसएम कनेक्शन समुद्र से जुड़ते हैं। कहते हैं कि कुंड की अस्सी फिट की गहराई में तेज जलधाराएं बहती हैं जो शायद समुद्र से समुद्र तक जाती हैं।

कुंड में प्रवेश द्वार 2 छेद हैं
कुंड की गहराई में कुंए जैसे 2 बड़े छेद हैं जिनमें से एक से गति में पानी आता है और दूसरे से वापस चला जाता है। एक जर्मन इंजीनियर ने दावा किया था कि कुंड के अंदर 250 फुट की गहराई में कुछ अनोखे जीव और रास्ते भी देखे गए थे। कुंड का पानी बिल्कुल नीला और साफ है। गुफा में स्थित भीम कुंड के ठीक ऊपर एक बड़ा सा कटाव है जिसमें सूर्य की किरणें कुंड के पानी पर अंकित हैं और उसका रंग इंद्रधनुष जैसा दिखता है।

महाभारत काल से जुड़ी है कथा
यह भीमकुंड की एक कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। कहते हैं अज्ञातवास के दौरान पांच पांडव वन से जा रहे थे, उसी समय द्रौपदी को प्यास लगी थी। पांचों प्रशिक्षकों ने पानी की तलाश की, लेकिन कहीं भी पानी नहीं मिला। इसके बाद युधिष्ठिर ने भाई नकुल को आसपास ऐसी जगह का पता लगाने के लिए कहा जहां पानी हो। भाई के आदेश पर नकुल ने धरती से निकले पानी का स्रोत तो पता कर लिया। अब समस्या ये थी कि पानी बाहर कैसे जाए। उसी समय भीम ने युद्ध स्थल पर अपना गढ़ा प्लांट स्थापित किया था। इस धरती में गहरा छेद हो गया और पानी दिखाई देने लगा। इस कुंड का निर्माण भीम की गढ़ा से हुआ था इसलिये इसे भीमकुंड का नाम से जाना जाता है।

इस कुंड को द्वापर युग का माना जाता है। 40-80 मीटर का यह कुंड देखने में बिल्कुल एक गदा जैसा दिखता है। कुंड के पास ही भीम ने की थी शिवलिंग की स्थापना। इसके बाद से यह स्थान भीमाशंकर महादेव के रूप में भी प्रसिद्ध हो गया। भीम कुंड के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसका पानी गंगा की तरह पवित्र होता है और कभी भी बुरा नहीं होता, जबकि आमतौर पर इसका पानी धीरे-धीरे-धीरे-धीरे खराब होता हुआ प्रतीत होता है। हालाँकि, लोगों का कहना है कि यह दिखने में अच्छा ही लगता है लेकिन पानी के अंदर लगातार बहाव होता है।

भीमकुंड को लेकर मनोयोग्यता है कि इनमें से कुछ में सैद्धांतिकता संबंधी गंभीर से गंभीर बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। आपदा से पहले ही उनका संकेत देने वाला यह कुंड आज भी शोध का विषय है।

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